दिलवाड़ा मंदिर, माउंट आबू
राजस्थान के माउंट आबू में हरी-भरी अरावली पहाड़ियों पर स्थित दिलवाड़ा मंदिर भारत की समृद्ध वास्तुकला और आध्यात्मिक विरासत के प्रमाण हैं। अपनी जटिल संगमरमर की नक्काशी के लिए प्रसिद्ध, ये जैन मंदिर दुनिया में मंदिर शिल्प कौशल के बेहतरीन उदाहरणों में से एक माने जाते हैं। 11वीं और 13वीं शताब्दी के बीच निर्मित ये मंदिर कलात्मक उत्कृष्टता और भक्ति के शिखर को दर्शाते हैं।
इतिहास और महत्व
दिलवाड़ा मंदिरों का निर्माण चौलुक्य (सोलंकी) राजवंश द्वारा 11वीं और 13वीं शताब्दी ई. के बीच करवाया गया था। इन मंदिरों का निर्माण जैन समुदाय के लिए पूजा और आध्यात्मिक शिक्षा के स्थान के रूप में किया गया था। अपने साधारण बाहरी स्वरूप के बावजूद, इन मंदिरों के अंदरूनी भाग में विस्तृत नक्काशी की गई है जो आगंतुकों को विस्मय में डाल देती है।
वास्तुकला की चमक
दिलवाड़ा मंदिरों को वास्तव में उल्लेखनीय बनाने वाली बात है सफेद संगमरमर का उत्कृष्ट उपयोग , जिसे मंत्रमुग्ध करने वाले पैटर्न, विस्तृत छत, अलंकृत स्तंभ और आश्चर्यजनक गुंबद बनाने के लिए जटिल रूप से उकेरा गया है। मंदिर की दीवारों, छतों और स्तंभों का हर इंच नाजुक डिजाइनों से सुसज्जित है जो जैन धर्मग्रंथों, पौराणिक आकृतियों और पुष्प रूपांकनों की कहानियों को दर्शाते हैं।
पाँच भव्य मंदिर
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विमल वासाही मंदिर (1031 ई.) - भगवान आदिनाथ (ऋषभनाथ) को समर्पित यह मंदिर सबसे पुराना और सबसे विस्तृत रूप से डिजाइन किया गया मंदिर है। इसे सोलंकी राजवंश के मंत्री विमल शाह ने बनवाया था।
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लूना वसाही मंदिर (1230 ई.) - भगवान नेमिनाथ के सम्मान में निर्मित इस मंदिर का निर्माण दो पोरवाड़ भाइयों, वस्तुपाल और तेजपाल ने करवाया था, जो वाघेला राजवंश के मंत्री थे। इस मंदिर का रंग मंडप (सभा कक्ष) एक अद्भुत कृति है।
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पार्श्वनाथ मंदिर - भगवान पार्श्वनाथ को समर्पित , इस तीन मंजिला मंदिर में नाग आकृति की अद्भुत नक्काशी है, जो तीर्थंकर की कथा का प्रतिनिधित्व करती है।
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महावीर स्वामी मंदिर - 1582 में बना यह मंदिर अपेक्षाकृत छोटा है और 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर को समर्पित है । मंदिर 19वीं सदी में बनाए गए खूबसूरत भित्तिचित्रों से सुसज्जित है।
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पित्तलहार मंदिर - भीम शाह द्वारा निर्मित इस मंदिर में भगवान आदिनाथ की एक बड़ी धातु (पित्तल) मूर्ति स्थापित है । मंदिर की भव्यता इसकी बारीक नक्काशीदार संगमरमर की दीवारों और स्तंभों से और भी बढ़ जाती है।
दिलवाड़ा मंदिर क्यों जाएँ?
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अद्वितीय शिल्पकला - इन मंदिरों में दुनिया की सबसे जटिल संगमरमर की नक्काशी देखने को मिलती है।
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ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व - इतिहास प्रेमियों और वास्तुकला प्रेमियों के लिए अवश्य देखने योग्य स्थान।
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राजस्थान के छुपे हुए रत्न - राजस्थान के अन्य भव्य संरचनाओं के विपरीत, ये मंदिर एक सूक्ष्म किन्तु दिव्य आकर्षण बनाए रखते हैं।
आगंतुक जानकारी
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स्थान: नक्की झील के पास, माउंट आबू, राजस्थान
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समय: दोपहर 12:00 बजे से शाम 5:00 बजे तक (गैर-जैन लोगों को इस समय दर्शन की अनुमति है)
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प्रवेश शुल्क: निःशुल्क (दान स्वीकार्य है)
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यात्रा का सर्वोत्तम समय: अक्टूबर से मार्च (सुखद मौसम अनुभव को बढ़ाता है)
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ड्रेस कोड: शालीन कपड़े (शॉर्ट्स और बिना आस्तीन के टॉप की अनुमति नहीं है)
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मंदिर परिसर के अंदर फोटोग्राफी की अनुमति नहीं है
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (एफएक्यू)
1. क्या गैर-जैन लोगों को दिलवाड़ा मंदिर में जाने की अनुमति है?
हां, गैर-जैन लोगों को मंदिरों में जाने की अनुमति है, लेकिन केवल दोपहर 12 बजे से शाम 5 बजे के बीच।
2. क्या दिलवाड़ा मंदिर में प्रवेश शुल्क है?
नहीं, प्रवेश शुल्क नहीं है। हालाँकि, मंदिर के रखरखाव के लिए दान स्वीकार किया जाता है।
3. क्या मंदिर के अंदर फोटोग्राफी की जा सकती है?
नहीं, मंदिर परिसर के अंदर फोटोग्राफी सख्त वर्जित है।
4. दिलवाड़ा मंदिर देखने का सबसे अच्छा समय क्या है?
यात्रा के लिए सबसे अच्छा समय अक्टूबर से मार्च तक है जब मौसम सुहावना होता है।
5. मंदिरों को देखने में कितना समय लगेगा?
मंदिरों को विस्तार से देखने में आमतौर पर 1-2 घंटे का समय लगता है।