प्रभु पतित पावन
प्रभु पतित पावन मै अपावन, चरण आयो शरण जी। यो विरद आप निहार स्वामी, मेट जामन मारन जी.. (1)
तुम ना पिचान्यो आण मान्यो, देव विविध प्रकार जी। या बुद्धि सेति निज न जान्यो, भ्रम गिन्यो हितकार जी।।(2)
भव विकट वन में करम बैरी, ज्ञान धन मेरो हरयो। तब इष्ट भुल्यो भ्रष्ट होय, अनिष्ट गति धरतो फिरयो।।(3)
धन घ.दी यो धन दिवस यो हिई, धन जनम मेरो भयो। अब भाग मेरो उदय आयो, दरश प्रभु जी को लाख लायो.. (4)
छवि वीतरागि नागन मुद्रा, दृष्टि नासा पै धरै। वसु प्रतिहारि अनंत गुन जुट, कोटि रवि छवि को धरै.न.. (5)
मित गयो तिमिर मिथ्यात्व मेरो, उदय रवि आतम भयो। मो उर हर्षः एसो भयो, मनु रंक चिंतामणि लायो।।(6)
माई हाथ जोड़ नवाय मस्तक, बिइनौं तुव चरनजी। सर्वोत्तमकृष्ट त्रिलोकपति जिन, सुनहु तारं तरणजी।।(7)
जाचूउं नहिं.न सुरवास पुनि, नर राज परिजन साथाजि। "बुध" जाचाहुउ.न तुव भक्ति भाव - भव, दिजिये शिवनाथजी.. (8)
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