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श्री श्रेयांसनाथ भगवान: ग्यारहवें तीर्थंकर

श्री श्रेयांसनाथ भगवान - ग्यारहवें तीर्थंकर

श्री श्रेयांसनाथ भगवान जैन धर्म में वर्तमान युग ( अवसर्पिणी ) के 11वें तीर्थंकर माने जाते हैं । उन्हें उनकी करुणा, सत्य, त्याग और अहिंसा के प्रति समर्पण के लिए याद किया जाता है।

उनका जन्म सिंहपुरी (आधुनिक सीहोर, मध्य प्रदेश, सारनाथ के पास) में राजा विष्णुवर्मा और रानी विष्णु देवी के घर हुआ था। इक्ष्वाकु वंश के । उनका प्रतीक (लंछन) गैंडा है , जो आध्यात्मिक पथ पर शक्ति, लचीलापन और दृढ़ संकल्प का प्रतिनिधित्व करता है।

उनके साथ सबसे पवित्र जुड़ावों में से एक जैन भिक्षा (दान) का पहला कार्य है - भगवान ऋषभदेव भगवान को इक्षु रस (गन्ने का रस) का दान, जिसे जैन धर्म में एक शुभ त्योहार अक्षय तृतीया के रूप में मनाया जाता है।

जन्म और वंश

  • माता-पिता : राजा विष्णुवर्मा और रानी विष्णु देवी

  • जन्मस्थान : सिंहपुरी (सिहोर, मध्य प्रदेश)

  • राजवंश : इक्ष्वाकु राजवंश

  • प्रतीक (लंछन) : गैंडा

  • यक्ष : ईश्वर यक्ष

  • यक्षिणी : मानवी यक्षिणी देवी

  • पवित्र वृक्ष : तिन्दुका

  • ऊँचाई : 20 धनुष (~60 फीट)

  • रंग : सुनहरा (कंचन वर्ण)

श्रेयांसनाथ भगवान ने छोटी उम्र से ही वैराग्य, ज्ञान और करुणा के लक्षण प्रदर्शित किये, जो उनके आध्यात्मिक भाग्य को दर्शाते थे।

पिछला जन्म

अपने पूर्वजन्म में, वे राजा नलिनीगुल्म थे, एक धर्मनिष्ठ शासक जो अपनी सत्यनिष्ठा और भक्ति के लिए जाने जाते थे। अंततः उन्होंने दीक्षा ली और तीर्थंकर-गोत्र कर्म से जुड़कर, तीर्थंकर के रूप में पुनर्जन्म के लिए तैयार हुए।

बचपन और त्याग

एक राजकुमार के रूप में जन्मे, उन्हें राजसी सुख-सुविधाएँ प्राप्त थीं, फिर भी उनका मन आध्यात्मिकता की ओर आकर्षित था। बचपन से ही, उन्होंने सांसारिक सुखों से विरक्ति और सभी जीवों के प्रति करुणा का भाव प्रदर्शित किया।

अंततः उन्होंने राजसी जीवन त्याग दिया, दीक्षा ली और अपनी आत्मा को शुद्ध करने के लिए गहन ध्यान और तपस्या में लग गए।

केवल ज्ञान (आत्मज्ञान)

कठोर साधना और तपस्या के बाद श्रेयांसनाथ भगवान को केवल ज्ञान (अनंत ज्ञान) की प्राप्ति हुई।

उनके ज्ञानोदय ने कर्म, मुक्ति और आत्मा की पवित्रता के शाश्वत सत्यों को उजागर किया इसके बाद, उन्होंने समवसरण (दिव्य उपदेश कक्ष) की स्थापना की और असंख्य प्राणियों को मोक्ष (मुक्ति) की ओर अग्रसर किया।

उनकी शिक्षाओं में इस बात पर जोर दिया गया:

  • अहिंसा - सभी जीवन रूपों के प्रति करुणा।

  • सत्य - विचार, वचन और कर्म में ईमानदारी।

  • अपरिग्रह (अपरिग्रह) - भौतिक इच्छाओं से अलगाव।

  • आध्यात्मिक वैराग्य - मुक्ति के लिए सांसारिक आसक्तियों का त्याग।

निर्वाण (मुक्ति)

  • स्थान : सम्मेद शिखरजी (पारसनाथ हिल्स, झारखंड)

  • समय : श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को
    श्री श्रेयांसनाथ भगवान ने 1000 अन्य संतों के साथ मोक्ष प्राप्त किया और सिद्ध बन गए - एक मुक्त आत्मा, जो जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्त हो गई।

छिपी और आध्यात्मिक अंतर्दृष्टि

  • प्रथम दान : वह जैन धर्म के प्रथम दान से जुड़े हैं - भगवान ऋषभदेव को इक्षु रस (गन्ने का रस) अर्पित करना, जो अक्षय तृतीया के त्यौहार को चिह्नित करता है

  • शाही वंश : भगवान ऋषभदेव सहित कई अन्य तीर्थंकरों के समान, इक्ष्वाकु वंश से संबंधित थे

  • यक्ष-यक्षिणी : ईश्वर यक्ष और मानवी यक्षिणी देवी द्वारा संरक्षित और सेवा की गई

  • आध्यात्मिक प्रभाव: उनकी करुणामयी शिक्षाओं ने राजाओं और आम लोगों दोनों को जैन धर्म अपनाने के लिए प्रेरित किया।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

Q1. श्री श्रेयांसनाथ भगवान का अक्षय तृतीया से क्या संबंध है?
👉 वह ऋषभदेव भगवान को इक्षु रस (गन्ने का रस) के पहले दान से जुड़े हैं , जो जैन त्योहार अक्षय तृतीया की उत्पत्ति का प्रतीक है

Q2. भगवान श्रेयांसनाथ को निर्वाण कहाँ प्राप्त हुआ?
👉 सम्मेद शिखरजी (पारसनाथ हिल्स, झारखंड) में उन्हें निर्वाण प्राप्त हुआ

प्रश्न 3. उसका चिन्ह (लांछन) क्या है?
👉 उनका प्रतीक गैंडा है , जो निडरता, शक्ति और दृढ़ संकल्प का प्रतिनिधित्व करता है।

Q4. उन्हें केवलज्ञान कैसे प्राप्त हुआ?
👉 गहन ध्यान, तपस्या और सांसारिक इच्छाओं से वैराग्य के माध्यम से , उन्होंने अनंत ज्ञान (केवल ज्ञान) प्राप्त किया।

Q5. उनके यक्ष और यक्षिणी कौन थे?
👉 ईश्वर यक्ष देव और मानवी यक्षिणी देवी उनके दिव्य परिचारकों (शासन देव और देवी) के रूप में सेवा की।


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