आव्यो शरणे तमारा, जिनवारा करजो
आव्यो शारने तमारा, जिनवारा करजो,
आश पुरी अमारि, नवयो भवपार मारो,
तुम अ विन अ जग मा, सार ले कोन मारी,
गायो जिनराज! आजे हराका अधिकथी, परम आनन्दकारी,
पायो तुम दरश नशे, भव-भय ब्राह्मण, नाथ! सर्वे अमारी ||1||
भावो भव तुम चरणो नी सेवा,
हू तो मांगु चू देवा धी देवा;
सामु जूओ ने सेवक जानी,
एवि उदय रत्न नि वाणी ||2||
जिने भक्ति, जिने भक्ति, जिने भक्ति, जिने भक्ति,
सदा मेस्तु सदा मेस्तु, सदा मेस्तु भावे-भावे;
उपसर्ग क्षय यान्ति, चिघन्ते विघ्नवलया,
मनः प्रसन्नतामेति, पूज्यमाने जिनेश्वरे ||3||
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जे दृष्टि प्रभु दर्शन करे,
ते दृष्टि ने पन धन्य छे,
जे जीभ जिनवारा ने स्टेव,
ते जीभ ने पन धन्य छे,
पिये मृदु वाणी सुधा,
ते कर्ण युग्ने धन्य छे,
तुज नाम मंत्र विशाद धरे,
ते ह्रदय ने पान धन्य चे ||4||